मौण मेले में मछलियों का महत्त्व
देहरादून। टिहरी जिले के जौनपुर क्षेत्र में मनाया जाने वाला प्रसिद्ध मौण मेला आज सोमवार को आयोजित होगा। इस मेले में अगलाड़ नदी में क्षेत्र के कई गांवों के ग्रामीणों द्वारा सामूहिक रूप से हजारों की संख्या में मछलियों का शिकार किया जाता है। मछलियों के शिकार के लिए नदी में मौण टिमरू का पाउडर मिलाया जाता है, जिससे कि मछलियां कुछ देर के लिए बेहोश हो जाती हैं। मौण, टिमरू के तने की छाल को सुखाकर तैयार किए गए महीन चूर्ण को कहते हैं। इसे पानी में डालकर मछलियों को बेहोश करने में प्रयोग किया जाता है। टिमरू का उपयोग दांतों की सफाई के अलावा कई अन्य औषधियों में किया जाता है। मौण के लिए दो महीने पहले से ही ग्रामीण टिमरू के तनों को काटकर इकट्ठा करना शुरू कर देते हैं। मौण मेले से कुछ दिन पूर्व टिमरू के तनों को आग में हल्का भूनकर इसकी छाल को ओखली या घराटों में बारीक पाउडर के रूप में तैयार किया जाता है। अगलाड़ नदी के पानी से खेतों की सिंचाई भी होती है। मछली मारने के लिए नदी में डाला गया टिमरू का पाउडर पानी के साथ खेतों में पहुंचकर चूहों और अन्य कीटों से फसलों की रक्षा करता है। ये मेला टिहरी रियासत के राजा नरेंद्र शाह ने स्वयं अगलाड़ नदी में पहुंचकर शुरू किया था। मेले में इस बार टिहरी जिले के जौनपुर विकासखंड, देहरादून के जौनसार और उत्तरकाशी के गोडर खाटर के छह से दस हजार लोगों के भाग लेने की उम्मीद है। इस साल लालूर के देवन, घंसी, खड़कसारी, मिरियागांव, छानी, टिकरी, ढकरोल और सल्टवाड़ी गांव पाउडर बनाने का काम कर रहे हैं। मौण को मौणकोट नामक स्थान से अगलाड़ नदी के पानी में मिलाया जाता है। इसके बाद हजारों की संख्या में बच्चे, युवा और वृद्ध नदी की धारा के साथ मछलियां पकड़नी शुरू कर देते हैं। यह सिलसिला लगभग चार किलोमीटर तक चलता है, जो नदी के मुहाने पर जाकर खत्म होता है। टिमरू का पाउडर जलीय जीवों को नुकसान नहीं पहुंचाता। इससे मात्र कुछ समय के लिए मछलियां बेहोश हो जाती हैं और इस दौरान ग्रामीण मछलियों को अपने कुंडियाड़ा, फटियाड़ा, जाल और हाथों से पकड़ते हैं। जो मछलियां पकड़ में नहीं आ पाती, वह बाद में ताजे पानी में जीवित हो जाती हैं।