शांतिकुंज में दिव्यांग जोड़े परिणय सूत्र में बंधे
हरिद्वार । गायत्री तीर्थ शांतिकुंज के संस्कारशाला उस समय तालियों से गुंजायमान हो उठा, जब दो दिव्यांग ने पवित्र अग्नि की साक्षी में एक दूसरे के गले में वरमाला डालकर सात फेरे लिये। शांतिकुंज के स्थायी कार्यकर्त्ता पुनीत गुरुवंश-कीर्ति गुरुवंश की सुपुत्री सौ. कॉ. सुनीता जन्म से ही दिव्यांग हैं। सुनीता बोल व सुन नहीं पाती। वे बधिरों के लिए चलाये जाने वाले स्पीकिंग हेण्ड्स नेशनल इंस्टीट्यूट, पंजाब से एमसीए, बीएड व एनटीटी की पढ़ाई पूरी की। इस समय सुनीता छत्तीसगढ़ सरकार के शिक्षा विभाग में सेवारत हैं। इसी तरह ग्राम धनसौली पानीपत, हरियाणा निवासी पूर्ण कश्यप के सुपुत्र चि. यशपाल भी जन्म से दिव्यांग हैं। वे भी सुन व बोल नहीं पाते। चि. यशपाल भी उच्च प्रशिक्षित हैं औरहिमाचल के एक प्राइवेट कंपनी में कार्यरत हैं। अखिल विश्व गायत्री परिवार प्रमुख डॉ. प्रणव पण्ड्या व शैलदीदी की प्रेरणा से दोनों के अभिभावकों ने विवाह कराने हेतु सहमतहुए। उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति के अनुसार विवाह कोई शारीरिक या सामाजिक अनुबन्ध मात्र नहीं हैं, यहाँ दाम्पत्य को एक श्रेष्ठ आध्यात्मिक साधना का भी रूप दिया गयाहै। इसलिए कहा गया है ‘धन्यो गृहस्थाश्रमः’। सद्गृहस्थ ही समाज को अनुकूल व्यवस्था एवं विकास में सहायक होने के साथ श्रेष्ठ नई पीढ़ी बनाने का भी कार्य करते हैं। वहीं शांतिकुंज व्यवस्थापक पं. शिवप्रसाद मिश्र व बालरूप शर्मा ने वैवाहिक संस्कार के वैदिक कर्मकांड सम्पन्न कराया। पं. मिश्र कहा कि विवाह दो आत्माओं कापवित्र बन्धन है। दो प्राणी अपने अलग-अलग अस्तित्वों को समाप्त कर एक सम्मिलित इकाई का निर्माण करते हैं। स्त्री और पुरुष दोनों में परमात्मा ने कुछ विशेषताएँ और कुछअपूणर्ताएँ दी हैं। विवाह सम्मिलन से एक-दूसरे की अपूर्णताओं की अपनी विशेषताओं से पूर्ण करते हैं, इससे समग्र व्यक्तित्व का निर्माण होता है। सादगीपूर्व माहौल में हुए इसवैवाहिक उत्सव में शांतिकुंज के कार्यकर्त्ताओं के अलावा हरियाणा, छत्तीसगढ़ सहित कई राज्यों से आये लोगों ने नवदम्पति को शुभाशीष दिया व सफल मांगलिक जीवन की कामना की।