शिक्षा का होता व्यापार, जनता है लाचार
एक ओर देश के प्रधानमंत्री जहां देश में बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ अभियान को चलाकर शिक्षा पर जोर दे रहे हैं। दूसरी ओर प्रदेश के मुख्यमंत्री निजी स्कूलों में भी गरीब बच्चों के दाखिले देने की बात कर रहे हैं, रि-एडमिशन बंद करने की बात कर रहे हैं । लेकिन इसके उलट इन स्कूलों में गरीब बच्चों के दाखिले तो दूर बल्कि अमीर लोगों को भी शिक्षा के मन्दिर के नाम पर खोली हुई इन दुकानों में अपने बच्चों को पढ़ाने के लिए पसीने आ रहे हैं। आपको बता दें कि देश के अन्दर ऐसे दर्जनों स्कूल हैं जो सरकार के मापदंडों पर खरा न उतरते हुए भी लगातार अपनी दुकाने खोले हुवे हैं ।इन स्कूलों में अभिभावकों को अपने बच्चों के दाखिले दिलाने के लिए फीस व किताबों का खर्चा सुनकर पसीने छुट जा रहे हैं, वही सरकारी स्कूलों में शिक्षा के गिरते हुवे स्तर के कारण मजबूर होकर बच्चों का दाखिला अभिभावकों को शिक्षा के नाम पर खुली इन दुकानों में कराना ही पड़ रहा है। हर स्कुल ने एक-एक दूकान में अपनी दलाली तय कर रखी है । सिर्फ स्कूल की किताबें उसी दुकान का पता देकर अभिभावक को किताब खरीदने के लिए भेजा जाता है। अगर कोई दूसरी दुकान पर पहुंच भी जाता है तो उस स्कूल की किताब वहां मिलती ही नहीं है जिससे यह स्कूल संचालक लाखों रुपये इन किताबों के बेचने में ही कमाकर बच्चों के अभिभावकों को लूटने का काम कर रहे हैं। इसके अलावा स्कूल से कपड़े जूते मोज़े आदी भी बेचने का धंधा शुरू हो गया है । री-एडमिशन का धंधा तो खुले आम चलता है जिसे बंद कराना तो सरकार क्या न्यायालय के भी बस की बात नहीं ।