सेब की नई प्रजाति विकसित की, पौधे में एक वर्ष में ही शुरु हो जाता उत्पादन
देहरादून। उद्यान के क्षेत्र में राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित बागवानी विशेषज्ञ पपाया मैन सुधीर चड्ढ़ा ने उत्तराखण्ड में सेब उत्पादन की नई तकनीक इजाद की है। जिसकी बदौलत काश्तकारों को चारों ओर से मुनाफा हो सकता है। पपाया मैन की विदेशों जाकर सेब की फसल का अध्ययन कर नई तकनीक खोज निकाली। जिसकी बदौलत सेब का बाग लगाकर अगले ही वर्ष मुनाफा कमाने की उम्मीद जागी है। उत्तरांचल प्रेस क्लब में आयोजित पत्रकार वार्ता में बागवानी विशेषज्ञ सुधीर चड्ढा ने कहा कि पहले सेब का बाग लगातार व्यवसायिक फसल उत्पादन के लिए तकरीबन आठ से दस साल का इंतजार करना होता था, जिससे काश्तकारों को काफी मेहनत और देखभाल करने की जरूरत होती थी। देशभर में सेब के उत्पादन के बावजूद लाखों टन सेब विदेशों से आयात किया जाता है। उन्होंने एक संकल्प के तौर पर सेब की फसल के लिए मशहूर कई देशों का दौरा किया। उन्होंने इटली, हाॅलेंड आदि मुल्कों से तकनीक हासिल कर उत्तराखण्ड में सेब की नई प्रजाति विकसित की। उनके लगाए जाने वाले बाग में एक वर्ष में ही सेब की फसल तैयार होने लगती है। लगभग पांच साल में एक हेक्टयर बाग में काश्तकार की आय लगभग पांच से दस लाख रूपए तक हो सकती है। उन्होंने कहा कि सरकारी आंकड़ों के अनुसार हर वर्ष लगभग चार लाख टन सेब का आयात भारतवर्ष में किया जाता है। जो कि हिमाचल के संपूर्ण उत्पादन का लगभग आधा है। श्री चड्ढ़ा का मानना है कि यदि उत्तरकाशी के किसान यह निश्चित करके सेब उत्पाद मंे पूरे उत्साह के साथ लग जाएं तो आने वाले पांच वर्षोंे में आसानी से सेब के आयात को रोकने मंे उत्तराखण्ड का एक जिला ही काफी होगा। उन्होंनरे इटली के विशेषज्ञों के सर्वेक्षण के आधार पर बताया गया है कि सेब के साथ-साथ अखरोट, चेरी तथा नवीन प्रजातियों के पल्म एंव नासपाती की संभावनाएं उत्तराखण्ड में अपार हैं। उत्तराखण्ड में फल क्रांति पलायन रोकने का प्रमुख जरिया बन सकती है। चड्ढा ने कहा कि उत्तराखण्ड में सेब उत्पादन के क्षेत्र में क्रांति लाने के उद्देश्य से सीएम एप्पल मिशन प्रारंभ किया है। जिसके अच्छे परिणाम अब सामने आने लगे हैं और कार्यक्रम को आगे बढ़ना तय किया है। उन्होंने कहा कि उत्तराखण्ड मंे सेब की खेती से प्रदेश से पलायन को भी रोकने में भी मदद मिलेगी।