भारी पड़ेगी यह चूक….
अनलॉक की प्रक्रिया के साथ ही उसी तरह की बेफिक्री और लापरवाही सामने आने लगी है जैसे इस साल के आरंभ में पहली लहर के उतार के वक्त देखी गई थी। कोरोना संक्रमण से बचाव की गाइडलाइन्स फिर किनारे की जाने लगी हैं। बाजारों के खुलते ही सोशल डिस्टेंसिंग की जरूरत को नजरअंदाज किया जा रहा है। बाजारों में फेस मास्क नाक से उतरकर ठोड़ी तक आ चुके हैं। सैर-सपाटे पर निकलने को आतुर लोगों की कारों के काफिले हिल स्टेशनों की तरफ कूच करने लगे हैं। कोरोना की दूसरी लहर की भयावहता के बाद जो धैर्य लोगों में भय से नजर आ रहा था, उसे दरकिनार करने की होड़ जैसी लगी है। हम न भूलें कि कोरोना संकट अभी खत्म नहीं हुआ है। बुधवार को स्वास्थ्य मंत्रालय की तरफ से संक्रमण के जो आंकड़े सामने आये हैं, उनमें संक्रमितों की संख्या बासठ हजार बतायी गई। मरने वालों की संख्या भी ढाई हजार के पार रही। हम इसे कोरोना संकट से मुक्ति की स्थिति कतई नहीं कह सकते। वह भी तब जब स्वास्थ्य विशेषज्ञ तीसरी लहर के आने की आशंका जता रहे हैं। हम यह न भूलें कि यूरोप व एशिया के कई देश तीसरी-चौथी लहर से जूझ रहे हैं। कमोबेश फिर वैसी ही स्थितियां पैदा हो रही हैं जैसी इस साल फरवरी में देखी गईं जब कोरोना महामारी में गिरावट का रुझान था। नये मामले दस हजार से कम हो रहे थे। देश में कोविड देखभाल केंद्र बंद किये जा रहे थे। यहां तक कि देश का शीर्ष नेतृत्व भी अपनी पीठ थपथपा रहा था कि दुनिया की अ_ारह फीसदी आबादी वाले देश ने कोरोना को प्रभावी ढंग से रोककर मानवता को एक बड़ी आपदा से बचाया है। कमोबेश ऐसा ही अति आत्मविश्वास लोगों के स्तर पर भी था, जो मानकर चल रहे थे कि कोरोना हमेशा-हमेशा के लिये वुहान चला गया है। फिर हमारी लापरवाही के चलते दूसरी भयावह लहर का दंश देश ने भोगा। हम न भूलें कि दूसरी मारक लहर के दौरान एक अप्रैल के बाद से दो लाख से अधिक लोगों को महामारी ने लीला। निस्संदेह संक्रमण के मामलों में गिरावट आई है लेकिन इतने कम मामले भी नहीं हैं कि हम लापरवाही के रास्ते चल पड़ें। किसी भी तरह की लापरवाही तीसरी लहर को आमंत्रित करेगी, जिसके आने को चिकित्सा विज्ञानी अपरिहार्य मान रहे हैं। प्रतीत हो रहा है कि लोग अप्रैल-मई में महामारी के भयावह दृश्यों को भूल गये। जब बेड न मिलने के कारण लोग अस्पताल के बाहर दम तोड़ रहे थे। ऑक्सीजन सिलेंडर के लिये लोग रात-रात भर कतारों में लगे रहे। श्मशान घाटों में अंतिम संस्कार की जगह न मिलने पर पार्क व खेल के मैदानों को श्मशान घाटों में तबदील किया गया। इसके बावजूद लोग लापरवाही करने से पीछे नहीं हट रहे हैं। चंडीगढ़ जैसी जगह में 23 मार्च के बाद सुरक्षा नियमों की अनदेखी करने के कारण पचास हजार लोगों पर जुर्माना लगा। कोलकाता में सु्रक्षा नियमों का उल्लंघन करने पर प्रतिदिन छह सौ से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया गया या मुकदमा चलाया गया। पुलिस प्रशासन के अधिकारी लोगों को रोक पाने में असफल नजर आ रहे हैं। जैसे ही मुंबई खुलना शुरू हुआ, फेस मास्क का उल्लंघन करने वालों की संख्या दोगुनी हो गई। मुंबई नगर निगम ने अप्रैल से अब तक 57 करोड़ से अधिक रुपये का जुर्माना वसूला है। वहीं बेंगलुरु पुलिस का कहना है कि जुर्माना व वाहन जब्ती के बावजूद लोग नियम तोडऩे से बाज नहीं आ रहे हैं। दरअसल, नियमों को तोडऩे के मामले में हमारे राजनेता और धार्मिक समूहों के मुखिया भी पीछे नहीं रहे हैं। इस साल की शुरुआत में राजनीतिक रैलियों व धार्मिक आयोजनों की कोरोना सुपर स्प्रेडर की भूमिका देश देख चुका है। उस देश में जहां का स्वास्थ्य ढांचा चरमराया हो। सकल घरेलू उत्पाद का महज डेढ़ प्रतिशत से कम धन स्वास्थ्य पर खर्च किया जाता हो, वहां कोरोना से बचाव के नियमों का उल्लंघन किसी अपराध से कम नहीं है।