दोनों हाथ नही पर रानी ने अपने दोनों पैरो से भरी उड़ान
वाराणसी से करीब 40 किलोमीटर दूर बड़ागांव ब्लॉक के दल्लीपुर ताड़ी गांव में जन्मी 23 साल की रानी की कहानी किसी नायिका से कम नहीं है | ये कहानी है उस विकलांग बच्ची की जिसने अपनी जिंदगी ९ साल की उम्र में पहले गरीबी देखी | फिर एक दुर्घटना में अपनी दोनों हाथे गवानी पड़ी | विदित हो की यह जानकर हैरानी होगी कि रानी इस समय मुंबई आईआईटी से एमटेक कर रही है. हालांकि, उसका यहां तक पहुंचने का सफर किसी विकलांग पर्वतारोही के एवरेस्ट चढ़ने से भी कठिन था | 9 साल की मासूम रानी को यह नही जानकारी थी की हाथ कट जाने के बाद दोबारा नहीं लगाए सकते है | जिन हाथों से कभी वो जिस गुड़िया को सजाती थी उसे गंदा देख रानी तड़प उठती. वो अपने दर्द को भूल जाती | रानी के पिता महेश एक गरीब किसान थे वह दोनों हाथ लगवाने में असमर्थ थे |
रानी जब अपने पिता से कहती थी की मुझे पढ़ना लिखना है तो उनके पिता के आखो में आंसू के अलावा कोई और चारा नही था | हादसे के बाद रानी को देख घर का माहौल ऐसा था कि मां उसे देख आंसू रोक न पाती और पिता महेश अपने दर्द को छलकने न देते. ऐसे हालात में रानी की मां उसका सहारा बनीं और उसको इस बात का अहसास न होने देती कि वो अपने दोनों हाथ खो चुकी है. मां ने रानी को जीना सिखाया और पैरों से लिखना सीखने के लिए प्रेरणा दी | माँ की प्रेणना से वह अपनी उड़ान को दो पैरो के सहारे शुरू की जो अब इंजीनियरिंग कर अपनी माँ की प्रेणना को सफल बनाया | आज अपने हौसलों से रानी का सपना है कि वो आईएएस बनकर गरीब बच्चों की मदद करें | उनका इस बात का हमेशा मलाल रहता है कि सबने उसकी मदद की, लेकिन सरकार की ओर से कोई मदद नहीं मिली |