“मैं पंख लगा कर आई हूं” ……
“मैं पंख लगा कर आई हूं”
मत बांधो मुझे जंजीरों में
मैं पंख लगा कर आई हूं,
पंखों में मेरे कितना दम है
यह सबको बताने आई हूं
बांध बेड़ियां पैरों में ,मत डालो चारदीवारी में,
तोड़ो जंजीरे, अब मत काटो पंख मेरे ,
मैं आसमां उड़ने आई हूं!
संसार जीतने आई हूं
मत बांधो मुझे जंजीरों में
मैं पंख लगा कर आई हूं…
धर्म निभाऊंगी, कर्म निभाऊंगी
रिश्ते और परिवार निभाने आई हूं,
क्षमताओं का है अंबार
यह सबको दिखाने आई हूं
मत बांधो मुझे जंजीरों में
मैं पंख लगा कर आई हूं….
सूरज की मैं पहली किरण हूं
जग को जगाने आई हूं,
घर घर रोशन करने को
मैं दीप जलाने आई हूं
मत बांधो मुझे जंजीरों में
मैं पंख लगा कर आई हूं…
कोमल हूं, कमजोर नहीं
सख्त हूं आसक्त नहीं,
मुझको लेकर है जो भ्रम
वो भ्रम मिटाने आई हूं
मत बांधो मुझे जंजीरों में
मैं पंख लगा कर आई हूं…
बेटी बनकर लाज निभाई,
पत्नी बन कर प्रीत सजाई
मां बनकर ममता बरसाई,
अब दुनिया सजाने आई हूं,
खुद को हर्षाने आई हूं
नारी मैं नर का बल हूं,
यह समझाने आई हूं
अंधियारे हर जीवन में,
उम्मीद जगाने आई हूं
मत बांधो मुझे जंजीरों में
मैं पंख लगा कर आई हूं-2..
डॉ. प्रतिभा जवड़ा
साइकोलॉजिस्ट,सोशल एक्टिविस्ट
लेखिका और कवियित्री