आप ने मानी योगेन्द्र यादव की मांग
लगता है आम आदमी पार्टी में मचे घमासान पर अब विराम लग सकता है, पार्टी ने पी.ए.सी. से बाहर निकाले गये योगेन्द्र यादव की बात मानते हुए पी.ए.सी. में यह फैसला लिया है की पार्टी दिल्ली के बाहर अन्य राज्यों में भी अब पैर पसारेगी | सूत्रों के अनुसार कल अरविंद केजरीवाल के घर हुई पीएसी की बैठक में आप के विस्तार को पर चर्चा हुई । पार्टी ने तय किया है कि वह अब दिल्ली से बाहर राष्ट्रीय राजनीति में भी कदम रखेगी। दिल्ली चुनाव के बाद से ही पार्टी के दो धडो में इसी बात का झगड़ा था की पार्टी दिल्ली से बाहर राजनीति में जाए या नही।
आप प्रवक्ता संजय सिंह ने कहा कि पार्टी के पी.ए.सी. सदस्यों ने तय किया है कि पार्टी का राष्ट्रीय स्तर पर विस्तार किया जाएगा। उन्होंने आगे बताया कि पार्टी साथियों को राज्यों की जिम्मेदारी देगी। और फैसले लेने में अब कार्यकर्ताओं को तरजीह दी जायेगी ।बताते चले की अपने शपथ ग्रहण समारोह में दिल्ली के सी.एम. अरविन्द केजरीवाल ने कहा था की अभी हम 5 साल सिर्फ दिल्ली पर ही फोकस करेंगे |
पार्टी की पॉलिटिकल अफेयर्स कमेटी यानी पीएसी ने सक्रिय कार्यकर्ताओं को सदस्य बनाने और अलग-अलग राज्यों में उनकी अलग-अलग भूमिका को तय करने के लिए कमेटी बनाने का फैसला किया है।
सत्य की लडाई जारी रहे।अन्यथा मात्र दिल्ली तक ही सीमित रहने से अन्य राज्यों के लोगों में कैसी पर प्रतिक्रिया होगी ,कोई छुपी बात नही होगी।हाँ शायद दिल्ली जैसी सफलता भले प्रश्नचिन्हीत रह जाये,उनकी आशाओ को फलीभूति होने का अहसास बना रहेगा
लोकसभा चुनाव को असफल देखना संभवत: सही उतना नही है जितना देखने मे आया।निश्चय ही प्रथम ग्रासे मक्षीका पात तो नहीं कहा जा सकता।आप की चुनावी रणनीति मे भले संसाधनो की कमी का खामिजियाना भुगतना पडां पर उपस्थिति का भरोसे का एहसास करा ही दिया।एकदम सफलता की आस ही पहली हार होगी
It is excellent decision. More important to me is unity of party. Regarding moving to other states, if not today we have to move tomorrow. Winning Delhi can not change national politics. Party must form a government in New Delhi to change National Politics. It seems AK is quite fast in declaring untested views. Not moving out of Delhi for 5 Years was an unwanted declaration . Now for quite some time TVs will be arguing on this topic only.
४०० जगहों पर लोकसभा चुनाव लड़ पाना अपने आप में एक जीत थी हार नहीं।इसी चुनाव के कारण २ साल पुरानी पार्टी देशव्यापी हो गई। अब दिल्ली के ६७ सीटों ने पूरे देश में एक आशा जगाई है इसका लाभ पार्टी को मिलेगा ही। अभी से हर जगह बुथ लेवल की तैयारी शुरू कर देनी होगी ,केंडिडेट का सोर्ट लिस्ट तैयार करना पैसों का इंतज़ाम करना आदि सारे काम पड़े हैं
पहले राज्य स्तर पर पी ए सी ,स्टेट एग्जीक्यूटिव कमीटी स्टेट डियिप्लीनरी कमीटी बनाना ,लोकपाल का स्टेट विंग बनाना। आदि आदि सारे काम करने के बाद ही चुनाव लड़ा जा पायेगा।
दिल्ली सरकार का अच्छा काम चुनाव प्रचार को धारदार बनायेगा।
और हम पूरे देश में फैल कर देश की पूरी राजनीति को साफ़ करेंगे।
Very Apt Decision.
we fough. LE @ our on risk.
We had two targets.
1 our volunteers must get involved in electrol process and get experienced.
2. We should provide clean candidates as an alternative to the public.
Due to our involvement we could penetrate through the interiors and rural areas of each constituency. We could spread our ideology among the people.
I think it was the wisest decision to fight LS.
We gained. What was defeated was only the ego of some people among us who failed to understand the revolution.
I myself was a candidate and am not at all down for such results as I fought it with clear aim and with proper awareness for the results.
its realt very sooding decesion ,country is looking on aap with great hope,we must keep there hope alive weather v die,we need all indians to do this.how we can leave peoples who even once stand in our que.after all we need every indian.