आप की कलह से धूमिल हुई वैकल्पिक राजनीति की उम्मीद
जो घटनाक्रम इन दिनों आम आदमी पार्टी में चल रहे है | यकीनी तौर पर वह उनका अंदरूनी मामला है और नैतिक रूप से हमे उस पर लिखने बोलने का हक भी नही बनता | पिछले कई दिनों से खुद को रोके हुए था ‘आप की कलह’ पर सम्पादकीय लिखने से | क्यूंकि उम्मीद ये थी कि आज नही तो कल “आप” के वरिष्ठ नेता आपस में बैठकर मामले का हल निकाल ही लेंगे | पर अब जब मिडिया में ये खबरे आने लगी है की योगेन्द्र यादव और प्रशांत भूषण आम आदमी पार्टी के अन्य असंतुष्ट नेताओ के साथ मिलकर एक नई पार्टी का गठन कर सकते है, तो यकीन मानिए बहुत बड़ा झटका लगा | झटका खाने का कारण भी है | यदि ऐसी कोई खबर किसी अन्य राजनितिक दल से आ रही होती तो हम लोग उसे एक सामन्य प्रक्रिया मानकर अधिक ध्यान भी नही देते | परन्तु अपने गठन से लेकर अब तक अपने अलग राजनितिक अंदाज के लिए पहचाने जाने वाले आप में ऐसा कलह हो जाएगा, कभी अनुमान भी नही लगाया था |
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विपक्ष को दिया मौका
‘आप’ ने जिन विपक्षी पार्टियों को विधानसभा चुनाव में पूरी तरह हाशिये पर धकेल दिया था | उन सभी को अब मौका मिल गया आप इस मामले की आड़ में हमलावर होने का | मैं पिछले कई दिनों से सोसल मिडिया पर देख रहा हूँ की किस तरह से आम आदमी पार्टी और अरविन्द केजरीवाल लगातार सोसल मिडिया द्वारा मजाक बनाये जा रहे है | विपक्षी दल भी अरविन्द को अहंकारी और तानाशाह होने के आरोप लगा रहे है | इस तरह जिस अहंकार की बात अरविन्द ने अपने शपथ ग्रहण में की थी आज वही आरोप उनपर भी लग रहे है | कांग्रेस-बीजेपी को उम्मीद है की यह मामला जितना लम्बा खींचेगा और आप की जितनी बदनामी होगी उतना ही उन्हें फायदा होगा | वह लोगो के बीच यह संदेश देने में सफल होंगे की अरविन्द केजरीवाल की कथनी और करनी में भारी अंतर है |
वैसे यदि देखा जाए तो तो इन सारी परिस्थितियों के लिए जिम्मेदार भी स्वयं आप के नेता ही है, जिन्होंने कभी स्टिंग तो कभी ब्लॉग और चिट्ठी बम से एक दुसरे को नीचा दिखाने की कोई कोर कसर बाकि नही छोड़ी |
दिल्ली के बाहर आप का भविष्य
फिलहाल जिस हालत में आम आदमी पार्टी है, बहुत मुश्किल है की वह किसी अन्य राज्य में खड़ी भी हो पाए | क्यूंकि आम आदमी पार्टी अन्य पार्टियों की तरह कॉर्पोरेट घरानों से आने वाले चंदे और भाड़े पर लायी भीड़ से तो काम चला नही सकती | कुछ आदर्शवादी युवा वोलेंटियर्स के अतिरिक्त उसके पास वर्तमान में अपनी कोई पूंजी नही है | और आज की स्थिति में या तो यह वोलेंटियर दो गुटों में बंट गया है | या बिलकुल शिथिल पड़ गया है | इसलिए पंजाब में थोड़ी बहुत उम्मीद के अतिरिक्त आप को दिल्ली के बाहर पैर जमाने में ‘जमाना’ लग सकता है |
वैकल्पिक राजनीति के प्रयोग को लगा झटका
आम आदमी पार्टी की जीत से जन्हा एक और क्षेत्रीय पार्टियों को बल मिला था की वह भी मोदी की आंधी से टकरा सकते है | वंही दूसरी और कुछ ऐसे भी लोग थे जिन्हें अपने-अपने राज्यों में भी ऐसे प्रयोग करने का हौसला मिला था | इस कलह ने जन्हा एक और ‘आप’ की अपनी छवि को नुकसान पंहुचाया वंही वैकल्पिक राजनीति के भविष्य को भी धूमिल किया है | इस कलह ने देश में वैकल्पिक राजनीति को फिर से कई साल पीछे धकेल दिया है |
अब यदि अरविन्द केजरीवाल पांच साल तक दिल्ली को वैसा बना पाए जैसा की वह दावा करते है तो यकीनी तौर पर वैकल्पिक राजनीति की उम्मीद पाले लोगो के लिए यह भी एक जीत की तरह ही होगी | शायद इसीलिए केजरीवाल का पूरा ध्यान भी फिलहाल सिर्फ दिल्ली पर केन्द्रित है | बस अब आगे आगे देखते है दिल्ली में होता है क्या |
दीपक कोठियाल (मैनेजिंग एडिटर पहचान एक्सप्रेस)