बढे चलो बढ़े चलो ……
हताशाओं का द्वार छोड़
कुंठाओ का जाल तोड़
उदासियों से मुख को मोड़
तेरे मन की भी यही पुकार
बढे चलो बढ़े चलो….
तू ठोकरों से गिर संभल
तू पत्थरों से प्राण खींच
ये ठोकरें सिखाएगी
बढ़े चलो बढ़े चलो….
कर संघर्षों का सामना
तू हालातों से हार मत
क्षणिक समय का फेर है
है वक्त की यही पुकार
बढ़े चलो बढ़े चलो…
लक्ष्य का संज्ञान कर
शुभ कर्मो का संधान कर
कल्याण का आह्वान कर
परिणाम तेरी मुट्ठी में
बढ़े चलो बढ़े चलो…
दे सांत्वना निज मन को तू
दे आत्मा को बल भी तू
सकारात्मकता सींच तू
तेरी आत्मा पुकारती
बढ़े चलो बढ़े चलो…..
डॉ. प्रतिभा जवड़ा चौहान
जयपुर राजस्थान ….✍️