उत्तराखण्ड राज्य में नेचुरोपैथी डॉक्टर के रजिस्ट्रेशन जल्द शुरू किए जाएंगेः मुख्यमंत्री धामी
देहरादून। राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह (से.नि.) एवं मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने गुरुवार को पतंजलि योगपीठ हरिद्वार में आयोजित जड़ी-बूटी दिवस कार्यक्रम में प्रतिभाग किया। इस अवसर पर उन्होंने संयुक्त रूप से आज़ादी के अमृत महोत्सव के अंर्तगत जड़ी-बूटी एवं आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति पर आधारित 75 पुस्तकों का विमोचन एवं 51 नई औषधियों का लोकार्पण किया। जड़ी-बूटी दिवस पर आयोजित कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि राज्यपाल ने आचार्य बालकृष्ण को उनके 50वें जन्मदिन की शुभकामनाएं दी और कहा कि आचार्य जी द्वारा अपने जन्मदिवस को जड़ी-बूटी दिवस के रूप में मनाना प्रकृति के संरक्षण के साथ हमारी समृद्धि के लिए अनोखी पहल है। उन्होंने कहा कि पंतजलि योगपीठ ऋषियों की उस परम्परा को आगे बढ़ा रहा है जिसने भारत को ज्ञान, विज्ञान, संस्कृति, अनुसंधान और आध्यात्म के बल पर विश्वगुरू के गौरव तक पहुंचाया है। राज्यपाल ने कहा कि योग, आयुर्वेद, यौगिक एवं बौद्धिक ज्ञान, जड़ी-बूटी, चिकित्सा हमारी विश्वगुरू की भावना की अनुभूति को बढ़ाने वाले हैं। उन्होंने कहा कि भारत की पहचान अपनी सभ्यता, संस्कृति और आयुर्वेद के कारण है। राज्यपाल ने कहा कि हम फिर से विश्वगुरू की पहचान प्राप्त करने की दिशा में बढ़ रहे हैं इसमें पतंजलि भी नेतृत्व की भूमिका में आगे बढ़ता दिखाई दे रहा है। उन्होंने कहा कि पतंजलि के विजन में आत्मनिर्भर भारत, बौद्धिक संपदा, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जैसे विचार और भावनाएं निहित हैं जो वर्तमान समय की मांग है। उन्होंने कहा कि आजादी के 75वीं वर्षगांठ के अवसर पर जड़ी-बूटी एवं आयुर्वेद चिकित्सा पद्धती पर आधारित 75 पुस्तकों का विमोचन अपने आप में अदभुत है। उन्होंने कहा कि जड़ी-बूटी दिवस लोगों के जीवन में सुख, शांति और समृद्धि की मूल अवधारणा को पुष्ट करने वाली है। भारत ने योग और आयुर्वेद की महान परंपरा को आधुनिक रूप दिया है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने उत्तराखण्ड राज्य में नेचुरोपैथी डॉक्टर के रजिस्ट्रेशन जल्द शुरू किए जाने की घोषणा की। उन्होंने आचार्य बालकृष्ण को जन्मदिवस की शुभकामनाएं देते हुए कहा की महान ऋषि परंपरा के अनुगामी, जड़ी-बूटियों के परमज्ञाता और इनका प्रचार-प्रसार कर आयुर्वेद की प्रतिष्ठा बढ़ा रहे आचार्य बालकृष्ण ने आयुर्वेद के क्षेत्र में ऐतिहासिक कार्य किए हैं। आयुर्वेद महज एक चिकित्सा पद्धति नहीं है, इसे एक समग्र मानव दर्शन के रूप में वर्णित किया जा सकता है। आयुर्वेद ऐसी विरासत है जिससे सम्पूर्ण विश्व का कल्याण सुनिश्चित किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि कोरोना काल के दौरान दुनिया ने आयुर्वेद के सिद्धांतों को अपनाया और लाभ पाया। आयुर्वेद जीवन का एक समग्र विज्ञान है, आज दुनिया भर में इसकी स्वीकार्यता है। आयुर्वेद केवल किसी रोगी के उपचार तक सीमित नहीं है बल्कि भारतीय दर्शन में इसे जीवन के मूल ज्ञान के रूप में स्वीकारा जाता है इसलिए इसे पंचम वेद की संज्ञा दी गई है।