आर्थिक तंगी ने मीना की पढ़ाई रोकी पर हौसलों ने दो किताबें लिखवा डाली
जब हौसलों की उड़ान हो तो हर एक नामुमकिन को भी आप मुमकिन बना सकते है ऐसा ही किया है एक छोटे से गाँव में रहने वाली मीना ने | मीना ने छोटी उम्र और तमाम विपत्तियों के बावजूद वह कारनामा कर दिखाया, जो दूसरी लड़कियों की सोच से भी दूर है। साहित्य के प्रति ऐसी लगन कि दो किताबें लिख डाली। लेकिन विडंबना है कि उसे आर्थिक तंगी के चलते पढ़ाई बीच में छोड़नी पड़ गई।आरंग तहसील के ग्राम खुटेरी निवासी मीना जांगड़े के परिवार में पांच भाई और चार बहनों में आठवें नम्बर की है। मीना ने प्राथमिक शिक्षा दीक्षा गांव में ही लिया। माध्यमिक स्कूल गांव में होने के कारण मीना को उमरिया नामक जगह पर जाना पड़ा और हाईस्कूल के लिए परसदा। पिता रामबगस जांगड़े और माता जगाना गांव में खेती का काम करते हैं। बड़े भाइयों की घर-परिवार के प्रति कोई जिम्मेदारी नहीं होने के कारण सारा बोझ मीना के ऊपर ही है। गरीब घर और बूढ़े मां-बाप की छोटी बेटी होने के बावजूद मीना ने कभी हार नहीं मानी। घर की आर्थिक स्थिति खराब होने के कारण दसवीं की परीक्षा दो बार नहीं दे पाई। 20 साल की मीना ने 2015 में तीसरी बार दसवीं की परीक्षा ओपन स्कूल से दी और अच्छे अंकों से पास हुई। पढ़ाई छोड़ चुकी मीना ने कविता लिखनी शुरू की। मीना को मदद के रूप में गांव के स्कूल की प्राचार्य और गांव के मुंहबोले भाई दीनदयाल साहू की मदद से वह छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग तक पहुंची, जिसके सहयोग से 2015 में उसकी किताबें प्रकाशित हुईं। हालांकि आगे पढ़ाई नहीं कर पाने का दर्द अब भी सालता है पर घर की अर्थिक तंगी, जिम्मेदारी के सामने वह मजबूर है।मीना जांगड़े ने ‘सोच बदलनी है” और ‘मां नाम मैं भी रखूंगी” नामक दो पुस्तकें लिखी हैं। मीना ने अपनी कविताओं में जीवन के विभिन्न् रंगों का चित्रण किया है। ‘मां नाम मैं भी रखूगी” में कहीं बचपन दिखाई देता है तो कहीं आतंकवाद, कहीं नारी की उड़ान का चित्रण तो कहीं बेड़ियों में जकड़ी नारी।