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पढ़े : यूनेस्को में दिए प्रधानमन्त्री के भाषण का मूल पाठ हिंदी में

pm in unesco

महानिदेशक, मादाम बुकोवा

महामहिम, महिलाएं और पुरूष

मुझे आज यूनेस्‍को में भाषण देने का सौभाग्य मिला है

इस महान संस्‍था के 70वीं वर्षगांठ में यहां आकर मुझे विशेष रूप से गर्व महसूस हो रहा है।

यूनेस्‍को की 70वीं वर्षगांठ मुझे इस युग की महत्‍वपूर्ण उपलब्धि का स्‍मरण कराती है। मानवीय इतिहास में पहली बार हमारे पास समूचे विश्‍व के लिए एक संगठन संयुक्‍त राष्‍ट्र संघ है।

इन दशकों में काफी परिवर्तन आए और कई चुनौतियां भी सामने आयी तथा इस युग में काफी प्रगति भी हुई। इस दौरान संगठन सशक्‍त बना है और बढ़ा है।

इस संगठन को लेकर कुछ संदेह, कुछ आशंकाएं रही है। इसमें तत्‍काल सुधार किये जाने की आवश्‍यकता है।

इस संगठन की शुरुआत के समय हालांकि कुछ देश इस संगठन में शामिल हुए और बाद में इससे तीन गुणा इसके सदस्‍य बने। आज अडिग विश्‍वास है।

 

‘संयुक्‍त राष्‍ट्र के कारण हमारा विश्‍व रहने के लिए बेहतर स्‍थान है और बेहतर स्‍थान बना रहेगा’

 

इस विश्‍वास ने मानवीय चुनौतियों के प्रत्‍येक पहलू से निपटने के लिए कई संगठनों को जन्‍म दिया है।

हमारा सामूहिक लक्ष्‍य अपने विश्‍व के लिए शांतिपूर्ण और समृद्ध भविष्‍य विकसित करना है। जिसमें प्रत्‍येक देश की आवाज हो:

सभी लोगों की एक अलग पहचान हो:

सभी संस्‍कृतियां उपवन में फूलों की तरह चहकें:

प्रत्‍येक मानव के जीवन की गरिमा हो:

प्रत्‍येक बच्‍चे के लिए भविष्‍य के लिए अवसर हों:

और हमारे ग्रह में अपने वैभव को संरक्षित रखने का अवसर हो।

कोई और संगठन हमारे हितों के लिए इस संगठन से अधिक काम नहीं करता।

हमारी सामूहिक नियति के बीज मानव के मस्तिष्‍क में रोपे गए हैं।

यह शिक्षा के प्रकाश और जिज्ञासा की भावना से पोषित होता है।

यह विज्ञान की अनूठी देन से प्रगति करता है।

और यह प्रकृति की मूल विशेषता- सदभाव और विविधता में एकता से शक्ति प्राप्‍त करता है।

इसलिए संयुक्‍त राष्‍ट्र के पहले मिशनों में यूनेस्‍को एक था।

इसलिए भारत यूनेस्‍को के काम का सम्‍मान करता है और इसमें अपनी भागीदारी को लेकर अत्‍यंत प्रसन्‍नता महसूस करता है।

मैं यूनेस्‍को के जन्‍म के समय से हमारे संबन्‍धों की असाधारण विरासत के प्रति सजग हूं।

मैं यूनेस्‍को के लिए महात्‍मा गांधी के संदेश को स्‍मरण करता हूं जिसमें उन्‍होंने स्‍थाई शांति स्‍थापित करने के लिए शिक्षा की आवश्‍यकताओं की पूर्ति के तत्‍काल कदम उठाए जाने का आग्रह किया था।

और इसके बाद यूनेस्‍को के प्रारंभिक वर्षों में अपने देश के राष्‍ट्रपति डॉ. राधाकृष्‍णन के नेतृत्‍व का भी स्‍मरण करता हूं।

हम शिक्षा और विज्ञान के लिए सहायता और भारत में हमारी सांस्‍कृतिक विरासत के सरंक्षण के लिए यूनेस्‍को की मदद के लिए आभारी है।

इसी तरह हम विश्‍व में यूनेस्‍को के मिशन में सहयोग देने और काम करने के लिए भी सौभाग्‍यशाली है।

भारत के सामने जो चुनौतियां है और भारतवासी जो स्‍वप्‍न देखते है उनके लिए हमारे दृष्टिकोण में यूनेस्‍को के आदर्शों की झलक मिलती है।

हमने अपने पूरातन देश में आधुनिक राज्‍य का निर्माण किया है जिसमें खुलेपन और सह-अस्तितत्‍व की अदभूत परंपरा है और असाधारण विविधता का एक समाज है।

हमारे संविधान की बुनियाद मौलिक सिद्धांतों पर आधारित है।

इन सिद्धांतों में सभी के लिए शांति और समृद्धि निजी कल्‍याण के साथ जूड़ी है।

राष्‍ट्र की शक्ति प्रत्‍येक नागरिक द्वारा हाथ-से-हाथ मिलाने से तय होती है।

और वास्‍तविक प्रगति का मूल्‍यांकन कमजोर-से-कमजोर व्‍यक्ति को सशक्‍त बनाने से किया जाता है।

लगभग एक वर्ष पहले पदभार संभालने के बाद से यही हमारी प्राथमिकता रही है।

हमें अपनी प्रगति का मूल्‍यांकन केवल आंकड़ों में वृद्धि से नहीं करना चाहिए बल्कि लोगों के चेहरे पर खुशी और विश्‍वास की चमक से किया जाना चाहिए।

मेरे लिए इसके कई मायने हैं।

हम प्रत्‍येक नागरिक के अधिकारों और स्‍वतंत्रा की हिफाजत और सरंक्षा करेंगे।

हम यह सुनिश्चित करेंगे कि‍ समाज में प्रत्‍येक व्‍यक्ति के विश्‍वास, संस्‍कृति और वर्ग का एक समान स्‍थान हो। उसके लिए भविष्‍य में आस्‍था हो और आगे बढ़ने का विश्‍वास हो।

हमारी परंपरा में शिक्षा का सदैव एक विशेष स्‍थान रहा है।

जैसा कि हमारे एक पुरातन श्‍लोक में कहा गया है।

व्‍यये कृते वर्धते एव नित्‍यं, विद्या धनं सर्व प्रधानं

ऐसा धन जो देने से बढ़े

ऐसा धन जो ज्ञान हो

और हरेक सम्‍पत्ति में सर्वश्रेष्‍ठ हो

हमने प्रत्‍येक युवक को कुशल बनाने और दूर-दराज के गांवों में प्रत्‍येक बच्‍चे को शिक्षित करने का अत्‍यंत महत्‍वपूर्ण कार्यक्रम शुरू किया है।

यदि महिलाएं भय, या अवसरों की बाधाओं से मुक्‍त नहीं होती और अलगाव तथा पूर्वाग्रह से पीडि़त नहीं होती तो हमारी प्रगति मृगतृष्‍णा बनी रहेगी। और इस परिवर्तन की शुरुआत बालिका से शुरू की जानी चाहिए।

इसलिए भारत में बालिकाओं को शिक्षित करने और मदद करने का कार्यक्रम मेरे दिल के बहुत करीब है। हम यह सुनिश्चित करेंगे की वे स्‍कूल जा सकें और सुरक्षा और गरिमा के साथ स्‍कूलों में उपस्थित रहे।

आज के डिजिटल युग ने ऐसे अवसर विकसित किये हैं जिनकी कभी कल्‍पना नहीं की गई थी, लेकिन डिजिटल खाई से असमानता बढ़ सकती है।

दूसरी तरफ डिजिटल कनैक्‍टिविटी और स्‍मार्ट फोन से शिक्षित बनाने, सेवाएं प्रदान करने और विकास का विस्‍तार करने की संभावनाओं की क्रान्ति सामने आई है।

यह हमारे युग का अत्‍यंत रोमांचक परिवर्तन है।

हमारा डिजिटल इंडिया कार्यक्रम भागीदारी पूर्ण, पारदर्शी और संवेदनशील सरकार बनाएगा जो नागरिकों से जुड़ी हों, हमने अपने 6 लाख गांवों को एक-दूसरे से जोड़ने के लिए डिजिटल साक्षरता मिशन की शुरुआत की है।

मानवीय आवास और मानवीय क्षमता को पूरा करने के बीच गहरा और मजबूत संबंध है।

इसलिए मेरी सरकार की सर्वोच्‍च प्राथमिकता प्रत्‍येक व्‍यक्ति के लिए छत, प्रत्‍येक घर में बिजली, हरेक की पहुंच के भीतर स्‍वच्‍छता और शुद्ध जल, प्रत्‍येक शिशु के जीवित रहने के लिए आशा और प्रत्‍येक जच्‍चा के लिए अपने शिशु को प्‍यार देने का अवसर प्रदान करने की है।

इसका अर्थ है कि नदियां और वायु स्‍वच्‍छ रहे जिससे हम सांस ले सकें और वनों में पक्षियों की चहक बरकरार रहे।

इन लक्ष्‍यों को हासिल करने के लिए हमें न केवल नीतियों और संसांधनों की आवश्‍यकता है अपितु इससे ज्‍यादा विज्ञान की शक्ति की आवश्‍यकता है।

हमारे लिए विज्ञान के माध्यम से मानव विकास के बड़े उद्देश्‍य की दिशा में काम करना है और देश में सुरक्षित, सतत, समृ‍द्ध भविष्‍य विकसित करना है।

विज्ञान सीमाओं के पार एक साझा उद्देश्‍य से लोगों को जोड़ता है।

और जब हम इसके फायदों को उनके साथ साझा करते जो इससे वंचित हैं तो हम आपस में जुड़ते और विश्‍व को रहने के लिए बेहतर स्‍थान बनाते हैं।

भारत अपने प्रारंभिक वर्षों में मिली सहायता को कभी नहीं भूलता, आज हम अन्‍य देशों के लिए अपनी जिम्‍मेदारी पूरी कर रहे है।

इसलिए भारत के अंतराष्‍ट्रीय कार्यक्रम में विज्ञान की बड़ी प्राथमिकता है।

संस्‍कृति लोगों की प्रभावशाली अभिव्‍यक्ति है और समाज की बुनियाद है।

भारत समेत विश्‍व की सांस्‍कृतिक विरासत के सरंक्षण की यूनरेस्‍को की पहल प्रेरणादायक है।

हम भारत की समृ‍द्ध और विविध सांस्‍कृतिक विरासत में मानवता की दौलत देखते हैं।

और हम इसे भावी पीढि़यों के लिए संरक्षित करने का हर प्रयास करते हैं।

हमने विरासत विकास और मजबूती योजना हृदय की शुरूआत की है ताकि हमारे नगरों की सांस्‍‍कृतिक विरासत संरक्षित की जा सके।

हमने देश में तीर्थ स्‍थानों के पुनर्रूत्‍थान के लिए तीर्थ स्‍थल पुनर्रूत्‍थान और आध्‍यात्मिकता  बढ़ाने का अभियान प्रसाद शुरू किया है।

महामहिम अध्‍यक्षा,

मैं देश के दर्शन और पहल का उल्‍लेख कर रहा हूं क्‍योंकि हम आकांक्षाओं और प्रयासों में विश्‍व के लिए अत्‍यंत स्‍पष्‍टता के साथ यूनेस्‍को के मूल्‍य को देखते हैं।

हमारे समय में चुनौतियों में हम तात्कालिकता के साथ उनका उद्देश्य भी देखते हैं।

हमारे विश्व में खामियों की रेखायें देशों की सीमाओं से हटकर हमारे समाजों के परिदृष्य में और हमारी सड़कों और नगरों में परिवर्तित हो रही हैं।

खतरे देशों की बजाय समूहों के विनाश की तरफ बढ़ रहे हैं।

आज हम न केवल अपने दावे पर संघर्ष करते हैं लेकिन इसके लिए भी संघर्ष करते हैं कि हम कौन हैं? और विश्व के कई भागों में संस्कृति टकराव का स्रोत बनी हुई है।

हमारे पास कंप्यूटर के माउस को क्लिक करने से संचार तक पूरी पहुंच है।

हम सूचना के युग में जी रहे हैं।

फिर भी हमें ये ज्ञात है कि परिचय हमेशा भ्रातृत्व की ओर नहीं ले जाता या पूर्वाग्रह में कमी नहीं लाता।

जब समूचे क्षेत्र के लिए इबोला का खतरा होता है, बेमौसमी तूफान से फसलें और जानें नष्ट होती हैं और बीमारी हमारे अत्यंत साहसी संघर्ष को पराजित करती है तो हम समझते हैं कि हम कितने कमजोर हो गए हैं।

जब हम यह देखते हैं कि लोग अस्तित्व के किनारे पर जी रहे हैं, बच्चे कक्षाओं से बाहर हैं और देशों में जो प्रगति के लिए पर्याप्त मानव संसाधन नहीं हैं तो हमें मालूम होता है कि हमें अभी बहुत आगे जाना है।

यह सही है कि हमारे विश्व ने पिछले सात दशक के दौरान अद्वितीय प्रगति की है। इसलिए हमारी प्रगति से हमें अपनी चुनौतियों से निपटने की प्रेरणा लेनी चाहिए।

यूनेस्को इन सबके समाधान में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।

संस्कृति को हमारे विश्व को जोड़ना चाहिए न कि तोड़ना।

यह लोगों के बीच अधिक सम्मान और समझबूझ का सेतु बनना चाहिए।

इसे देशों को शांति और सदभाव के समय जोड़ना चाहिए। भारत के पड़ोस में एशिया और हिंद महासागर क्षेत्र में हम अपने सांस्कृतिक संबंधों की फिर पहचान कर रहे हैं ताकि इस गतिशील क्षेत्र में घनिष्ठ मैत्री का संबंध बनाया जा सके।

हमें अपनी संस्कृतियों, परम्पराओं और धर्मों की गहराई तक जाना चाहिए ताकि विश्व में उग्रवाद, हिंसा और विभाजन के बढ़ते ज्वार पर काबू पाया जा सके।

हमें और अधिक शांतिपूर्ण विश्व का बीजारोपण करने के लिए विश्व के युवकों के बीच आदान-प्रदान बढ़ाना होगा।

संस्कृतियों में पारंपरिक ज्ञान की बड़ी दौलत समाहित है। विश्व भर में विभिन्न समाजों ने इसे काफी लंबे समय में बुद्धिमत्ता से हासिल किया है।

और इन संस्कृतियों में हमारी कई समस्याओं के आर्थिक, कुशल और पर्यावरण अनुकूल समाधान के रहस्य हैं।

लेकिन आज हमारे विश्व में इनके दुर्लभ होने के खतरे बने हुए हैं।

इसलिए हमें पारंपरिक ज्ञान को पुनर्जीवित, संरक्षित और पोषित करने के अधिक प्रयास करने होंगे।

इससे मानवीय सभ्यता के बारे में मूल सत्य भी पुनः परिभाषित होगा क्योंकि हमारी संस्कृतियां विविध हैं और ज्ञान के कई स्रोत हैं।

ऐसा करते हुए हम स्वयं को अपनी चुनौतियों से निपटने के लिए अधिक अवसर दे सकेंगे।

हमें विश्व के सबसे अधिक कमजोर क्षेत्रों विशेष तौर पर स्वास्थ्य और खाद्य सुरक्षा में मानव कल्याण के लिए विज्ञान का और अधिक दोहन करना चाहिए।

जलवायु परिवर्तन वर्तमान में एक बड़ी वैश्विक चुनौती है और इसे देखते हुए सामूहिक मानवीय कार्रवाई और व्यापक आवश्यक कदमों की जरुरत है।

हमें अपनी बुद्धिमत्ता की समूची दौलत, प्रत्येक संस्थान की शक्ति, नवोन्मेष की सभी संभावनाओं और विज्ञान की शक्ति का इस्तेमाल करना चाहिए।

भारत में पुरातन काल से आस्था और प्रकृति में गहरा संबंध रहा है।

हमारे लिए समृद्धि का एकमात्र रास्ता निरंतरता है।

हम इस विकल्प का अपनी संस्कृति और परंपरा के प्रति प्राकृतिक रुचि से चयन करते हैं। साथ ही हम इसे अपने भविष्य की वचनबद्धता के लिए भी अपनाते हैं।

उदाहरण के तौर पर हमने अगले सात वर्ष में 1 लाख 75 हजार स्वच्छ और नवीकरणीय ऊर्जा का अतरिक्त उत्पादन करने का लक्ष्य निर्धारित किया है।

अक्सर हमारी चर्चा उत्सर्जन में कटौती करने में तेजी लाने पर आकर थम जाती है लेकिन हम केवल विकल्प थोपने के बजाय वाजिब समाधान की पेशकश करें तो हमारे सफल होने की ज्यादा उम्मीद होगी।

इसलिए मैंने स्वच्छ ऊर्जा विकसित करने के लिए वैश्विक सार्वजनिक कार्रवाई का आग्रह किया है। यह ऊर्जा वाजिब है और सबकी पहुंच में है।

और इसी कारण से मैं जीवनशैली में परिवर्तन की भी अपील करता हूं। क्योंकि हम जो उत्सर्जन कटौती की बात कर रहे हैं वह हमारी जीवनशैली का स्वाभाविक निष्कर्ष होगा।

और यह आर्थिक कल्याण के एक अलग मार्ग का माध्यम भी बन सकेगा।

इसी दर्शन के साथ मैंने पिछले वर्ष सितम्बर में संयुक्त राष्ट्र महासभा में 21 जून को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस घोषित करने की मांग की थी।

योग से स्वयं, समाज और प्रकृति में खुलेपन और सदभाव की भावना जागृत होती है।

हमारी जीवनशैली में परिवर्तन से और सजगता विकसित होने से हमें जलवायु परिवर्तन से निपटने और अधिक संतुलित विश्व विकसित करने में मदद मिल सकती है।

पिछले दिसम्बर में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने हमारे प्रस्ताव को रिकार्ड कम समय में रिकार्ड देशों के समर्थन से स्वीकार किया।

यह न केवल भारत के लिए मैत्रीपूर्ण कार्रवाई थी। इससे साझा चुनौतियों के समाधान की तलाश में परिचित सीमाओं से आगे जाने की हमारी सामूहिक क्षमता की झलक मिलती है।

हमारी गंगा नदी को स्वच्छ बनाने का अभियान एक मिशन है जो संस्कृति, विज्ञान, पारंपरिक ज्ञान, शिक्षा, अर्थव्यवस्था और पर्यावरण को जोड़ता है और इसके अलावा यह हमारी जीवनशैली से भी जुड़ा है।

महामहिम अध्यक्षा,

इस सभागार के बाहर मैंने महान भारतीय दार्शनिक और संत श्री अरबिंदो की प्रतिमा पर माल्यार्पण किया।

हम उनकी मानवीयता और आध्यात्मिकता, निजी सजगता की बाहरी विश्व के साथ एकाग्रता के उनके विश्वास, शिक्षा के उज्जवल उद्देश्य, विज्ञान की सेवा और राष्ट्रीय स्वतंत्रता, सभ्यताओं की विविधता और संस्कृति की स्वायत्ता पर आधारित विश्व की एकता से बहुत कुछ सीख सकते हैं।

यह इस संगठन के लिए आदमी के मस्तिष्क में शांति की रक्षा- मार्गदर्शक भावना है।

70वीं वर्षगांठ हमारे अबतक की उल्लेखनीय यात्रा के आयोजन का अवसर है। यह उस बुद्धिमत्ता के साथ आगे देखने का अवसर भी है जो हमें समय और अनुभव से प्राप्त हुई है।

हम संयुक्त राष्ट्र में जो कुछ भी हासिल करने की कामना करते हैं उसमें सदैव यूनेस्को भूमिका निभाता रहेगा। भले ही यह कामना सतत विकास, 2015 के बाद की हमारी कार्यसूची और शांति तथा सुरक्षा के लिए जलवायु परिवर्तन से संबंधित हो।

हमारे भविष्य के प्रति यूनेस्को की जिम्मेदारी विस्तृत हुई है और इसलिए हमारा संकल्प भी सशक्त बनाना चाहिए।

मुझे यहां विचार व्यक्त करने का अवसर देने के लिए धन्यवाद

धन्यवाद

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