लकवे से डिप्रेशन और डिप्रेशन से बैडमिंटन चैंपियन तक जानिए ख़बर
यह बात 2004 की है। सेना में लांस नायक सुरेश कार्की एक घायल सैनिक को बेस अस्पताल गुवाहाटी पहुंचा रहे थे, तभी उनकी ऐंबुलेंस हादसे का शिकार हो गई। सुरेश इस हादसे में घायल हो गए, जिससे उनकी कमर का निचला हिस्सा लकवे का शिकार हो गया। 3 हफ्ते के अंदर एक के बाद एक 3 सर्जरी हुईं, लेकिन सुरेश ने हिम्मत नहीं खोई।एक दिन न्यूरो सर्जन से उन्होंने बड़ी मासूमियत से पूछा, सर जी मैं कब ठीक होऊंगा। डॉक्टर ने कहा, बेटा अब जिंदगी वील चेयर पर बितानी होगी। सुरेश के लिए यह बात सदमे की तरह थी, क्योंकि फुटबॉल उनका पसंदीदा खेल था। सुरेश डिप्रेशन में चले गए, खाना-पीना कम कर दिया, किसी से बात नहीं करते थे। कोई बात करता तो रोने लगते थे। उन्हें लगता कि जिंदगी 6 महीने से ज्यादा नहीं होगी। सुरेश को सेना के पुणे स्थित उस सेंटर में भेज दिया गया जहां उनके जैसे सैनिकों की जिंदगी को नए सिरे से संवारा जाता है। सुरेश वहां मैनेजमेंट और कंप्यूटर कोर्स करते हुए जिंदगी के बिखरे तिनकों को सहेजने लगे। तभी उनकी मुलाकात वहां के खिलाड़ियों से हुई, जिन्हें देख वह भी खेलने को उत्सुक हुए। पहले वह एथलेटिक्स से जुड़े इवेंट्स में हिस्सा लेने लगे फिर लॉन टेनिस और टेबल टेनिस में हाथ आजमाया। उनका उत्साह इस कदर बढ़ा कि देश के लिए मेडल जीतने का सपना देखने लगे, लेकिन शारीरिक स्थिति के कारण ये खेल उन्हें सूट नहीं कर रहे थे। तभी उन्हें बैडमिंटन से जुड़ने की सलाह मिली। इस खेल में उन्होंने अपना फोकस जमाया और एक के बाद एक मेडल हासिल किए। फिलहाल वह पैरा बैडमिंटन में भारत के शीर्ष खिलाड़ियों में हैं। सुरेश सेना की 9 गोरखा राइफल्स रेजिमेंट से जुड़े हैं और इस रेजिमेंट ने अपने 200 साल पूरे होने पर उन्हें अपने हीरो के तौर पर पेश किया है।