सल्यूट : डॉक्टरों ने मां और नवजात बच्चे की जिंदगी बचाई
देहरादून। सात माह की गर्भवती महिला की गंभीर स्थिति का पता चलने के 30 दिन बाद इंफेक्शन डिजीज की कंसल्टेंट डॉ. नेहा रस्तोगी पांडा के नेतृत्व में फोर्टिस हॉस्पिटल गुरुग्राम के डॉक्टरों ने मां और नवजात बच्चे की जिंदगी बचाने में सफलता पाई। देहरादून की 32 वर्षीया मरीज सात माह की गर्भवती थी और उन्हें बहुत तेज बुखार के साथ ही सांस लेने की तकलीफ लगातार बढ़ती जा रही थी। उन्हें देहरादून के एक निजी अस्पताल में तत्काल भर्ती कराया गया। गर्भावस्था में अधिक पावर वाली दवाएं नुकसानदेह साबित हो सकती थीं, इसे देखते हुए मरीज को हल्की दवाइयां देते हुए निगरानी में रखा गया। मरीज की लगातार बिगड़ती स्थिति देखने के बावजूद देहरादून के दूसरे अस्पताल में उसे भेज दिया गया। गर्भधारण के कारण महिला की सेहत वैसे ही असामान्य थी, उस पर सामान्य रूप से सांस लेने में तकलीफ के कारण उसकी स्थिति और चिंताजनक होती जा रही थी। परिजनों ने तब मरीज को फोर्टिस हॉस्पिटल, गुरुग्राम ले जाने का फैसला किया जहां उसकी तत्काल देखभाल शुरू की गई। मरीज की सामान्य स्थिति गिरकर 80 फीसदी तक पहुंच गई थी और उसे तत्काल उच्च दर के ऑक्सीजन सपोर्ट पर रखा गया। आगे की निगरानी के लिए मरीज को आईसीयू में भर्ती कराया गया। कोविड संक्रमण की किसी भी संभावना को दूर करने के लिए आरटी पीसीआर कराई गई लेकिन बदकिस्मती से मरीज की रिपोर्ट पॉजिटिव आई। गर्भवती होने के कारण बच्चे को भी संक्रमित होने की आशंका को देखते हुए अस्पताल की टीम ने मरीज का हरसंभव ख्याल रखा। डॉ. नेहा रस्तोगी पांडा बताती हैं, उच्च स्तर पर ऑक्सीजन सप्लाई देने के बावजूद मरीज की सांस लेने की जद्दोजहद को देखते हुए उसे प्राथमिकता के आधार पर वेंटिलेटर पर रखने और समय पूर्व डिलीवरी कराने का फैसला किया गया ताकि उस पर मां बनने का दबाव कम हो जाए। डॉक्टरों की टीम के साझा प्रयास से वेंटिलेटर पर ही समय पूर्व डिलीवरी से बच्ची का जन्म हुआ। चूंकि बच्ची के फेफड़े भी अपरिपक्व थे इसलिए उसे भी वेंटिलेटर पर रखा गया। दिक्कत तब और बढ़ गई जब मां के फेफड़े में उच्च दबाव के साथ एयर लीक भी होने लगा जिसके लिए चेस्ट ट्यूब डाला गया। मरीज को रेसिस्टेंट बैक्टीरिया के कारण गंभीर रक्त संक्रमण भी हो गया था जिसके लिए उच्च क्षमता वाली एंटीबायोटिक दवाएं दी गईं। लगातार प्रयास और उचित इलाज के 13 दिन बाद मरीज को वेंटिलेटर सपोर्ट से हटाने में सफलता मिली और धीरे-धीरे उसे ऑक्सीजन सपोर्ट भी कम किया जाने लगा। सभी तरह की स्वास्थ्य स्थितियों और सुधारों के बाद उसकी कोविड रिपोर्ट भी निगेटिव आई। वहीं बच्ची में भी धीरे-धीरे सुधार होता गया और कुछ ही दिन में उसे भी डिस्चार्ज कर दिया गया।