पार्टी सदस्य बनाम सामाजिक सदस्य
हाल ही में देश में सम्पन्न हुए राज्य सभा चुनाव में बहुत कुछ देखने और सिखने को मिला | यहा देखने का अभिप्राय राजनीतिक पार्टियों का एक दूसरे को पटकनी देने के लिए किस हद तक जा सकते है उससे है वही सिखने का अभिप्राय पार्टियों द्वारा नेताओ को ही राज्य सभा भेजने से है | इसी होड़ में राज्यो की समस्या और मुद्दे एक डिब्बे में बन्द के बराबर है | क्यों न ऐसा हो लोक सभा का जिस तरह से अधिकाँश सदस्य राजनीतिक पार्टियों के सदस्य होते है इसी क्रम में राज्य सभा के अधिकतर सदस्य जमीन से जुड़े समाजिक कार्यकर्ता क्यों नही हो सकते है | लेकिन क्या ? राजनीतिक पार्टियो को तो अपनी दुकानदारी यहा पर भी चलानी है | इसी लिए सेटिंग और गेटिंग के खेल के लिए पार्टी से ही किसी न किसी को उम्मीदवार के रूप में खड़ा कर दिया जाता है | इस प्रथा को राजनीतिक पार्टियां बन्द कर नेतागिरी को अलग कर सामाजिक सरोकार से जुड़े लोगो को ही राज्य सभा भेजे | जिससे जनता की पीड़ा को वह एक अच्छे स्तर पर प्रस्तुत कर सके क्यों की एक जमीनी सोसल वर्कर ही उस पीड़ा को भलीभाँति समझ सकता है | यदि सभी राजनीतिक पार्टिया इस पर ध्यान दे तो एक सुनहरे युग की शुरुआत देखी जा सकती है |
सम्पादक – अरुण कुमार यादव