भगवान शिव कथा से बढ़कर कोई दिव्य ज्ञान रसायन नहींः साध्वी गरिमा
देहरादून। दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान की ओर से जोधपुर, राजस्थान में श्री शिव कथा का भव्य आयोजन 17 से 23 सितंबर तक किया जाएगा। जिसमें गुरुदेव आशुतोष महाराज की शिष्या कथा व्यास साध्वी गरिमा भारती कथा का वाचन कर रही है। कथा के प्रथम दिवस साध्वी ने बताया कि भगवान शिव सृष्टि के कण-कण में स्पंदनशील है। भगवान शिव की वैश्विक उपस्थिति भारत के कोने-कोने में पाए जाने वाले ज्योतिर्लिंगों से स्पष्ट होती है। भगवान शिव के प्रत्येक नाम, उनकी वेशभूषा, उनका आचरण हमें इस समाज के किसी ना किसी पक्ष से संबंधित ज्ञान प्रदान करता है। भगवान शिव के समुद्र मंथन के समय घोर हलाहल विष का पान करने की लीला एक संदेश देती है कि हमें हमारे अंतः करण में ज्ञान के मंथनी के माध्यम से मंथन कर विषय विकारों को बाहर निकालकर घट में परमात्मा के अमृत को प्राप्त करना है। आज प्रत्येक मानव अपने भीतर के विषय विकारों की अग्नि में ही जलकर अशांत है।
उस शांति की प्राप्ति के लिए प्रत्येक मानव को घट में अमृत को प्राप्त करना होगा। हमारे शास्त्र ग्रंथों के अनुसार मानव का जो शरीर है वह पांच तत्वों से निर्मित है और उसके मस्तक रूपी भाग जो है वह आकाश तत्व से बना है। जिस आकाश को गगन मंडल भी कहा जाता है। जिस गगन मंडल में अमृत का कुंड है जहां ब्रह्म का वास है। जिस प्रकार से हम भगवान शिव के मस्तक पर गंगा को सुशोभित देखते हैं। गंगा जी के जल को अमृत कह कर के संबोधित किया जाता है यह हमारे मस्तक रुपी गगन मंडल में जो अमृत का कुंड है उसे प्राप्त करने का संदेश देती है यदि हम उस अमृत के धार को प्राप्त करना चाहते हैं तो हमें एक गुरु की कृपा से अंतर में जगत में उतरकर उस अमृत पान की युक्ति को जानना होगा।
साध्वी ने कहा कि पावन कथा से बढ़कर कोई दूसरा दिव्य ज्ञान रसायन नहीं, जो मानव के जीवन को मुक्ति व सद्गति प्रदान कर सकें। इस कथा को सुनकर माता पार्वती भगवान शिव से अमरता का वरदान प्राप्त करती है। भगवान शिव के गले में पहने हुए नर मुंड माला प्रत्येक जीव के आवागमन के चक्र को दर्शाती है। जिस प्रकार माता पार्वती भगवान शिव से ज्ञान प्राप्त कर अमरता को प्राप्त हो गई, शिव भगवान के गले में पहने नर मुंडो की संख्या 108 पर आ कर रुक गई थी। ऐसे ही हमें भी उस ईश्वर के तत्व स्वरूप से जुड़कर आवागमन के चक्र से मुक्ति को प्राप्त करना है। शिव का प्रतिमा स्वरूप उनके साकार स्वरूप को दर्शाता है तो उनका ज्योतिर्लिंग स्वरूप निराकार स्वरूप की ओर इशारा है। एक तत्व से ना जुड़े होने के कारण आज हमारे दृष्टि में भेद है। कोई भगवान श्रीराम को मानता है, तो कोई प्रभु श्री कृष्ण को, कोई शिव भगवान की पूजा करता है, तो कोई आदि शक्ति मां जगदंबिका की। लेकिन वास्तव में ज्ञान नेत्र के अभाव के कारण हम इन सब समस्त शक्तियों को अलग-अलग मानकर उनकी पूजा करते हैं।