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उत्तराखंड : लंबी कानूनी लड़ाई के बाद आखिरकार OBC के जाति प्रमाण पत्रों पर अंकित होने लगे वैधता

उत्तराखंड सरकार के शासनादेश का पालन करवाने के लिए लड़नी पड़ी एक साल चार महीने की कानूनी लड़ाई

देहरादून | मामला इस प्रकार है कि उत्तराखंड सरकार द्वारा जारी किये जाने वाले वाले अन्य पिछड़ा वर्ग के जाति प्रमाण पत्रों के ऊपर उनकी वैधता अवधि अंकित नही रहती है। जबकि अन्य प्रकार के प्रमाण पत्र जैसे कि आय प्रमाण पत्र एँव सेवायोजन प्रमाण पत्रों आदि के ऊपर उनकी वैधता अवधि स्पष्ट रूप से अंकित की जाती है। इसी प्रकार अन्य पिछड़ा वर्ग के जाति प्रमाण पत्र की वैधता 3 वर्ष निर्धारित की गई है। औऱ उत्तराखंड सरकार के शासनादेश संख्या 310, दिनांक 26 फरवरी 2016 में स्पष्ट रूप से यह प्रावधान किया गया है कि अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के जाति प्रमाण पत्रों पर उनकी वैधता अवधि (3 वर्ष) को अनिवार्य रूप से प्रमाण पत्र के ऊपर अंकित करना अनिवार्य है।।लेकिन प्रदेश में इस शासनादेश का पिछले पाँच सालों से पालन नहीं किया जा रहा था। औऱ खुले तौर पर इस शासनादेश की अनदेखी औऱ इसका घोर उल्लंघन हो रहा था। लेकिन इस ओर शासन के किसी भी अधिकारी का ध्यान नहीं गया। औऱ वर्ष 2016 से निरन्तर इस शासनादेश की अनदेखी और उल्लंघन होता रहा। इसी को लेकर मैंने दिनांक 27 जनवरी 2021 को उत्तराखंड अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग में एक जनहित याचिका दायर की। जिसमे मैंने माननीय आयोग से निवेदन किया था कि उत्तराखंड सरकार द्वारा जारी किये जाने वाले वाले अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के जाति प्रमाण पत्रों के ऊपर उनकी वैधता अवधि अंकित नही रहती है। जबकि अन्य प्रकार के प्रमाण पत्र जैसे कि आय प्रमाण पत्र एँव सेवायोजन प्रमाण पत्रों आदि के ऊपर उनकी वैधता अवधि स्पष्ट रूप से अंकित की जाती है। इसी प्रकार अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के जाति प्रमाण पत्र की वैधता 3 वर्ष निर्धारित की गई है। औऱ उत्तराखंड सरकार के शासनादेश संख्या 310, दिनांक 26 फरवरी 2016 में स्पष्ट रूप से यह प्रावधान किया गया है कि अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के जाति प्रमाण पत्रों पर उनकी वैधता अवधि (3 वर्ष) को अनिवार्य रूप से प्रमाण पत्र के ऊपर अंकित करना अनिवार्य है। लेकिन शासन द्वारा उक्त शासनादेश का पालन नही किया जा रहा है। जो कि नियम विरूद्ध है। क्योंकि अन्य पिछड़ा वर्ग के जाति प्रमाण पत्र की वैधता 3 वर्ष है। लेकिन यह वैधता प्रमाण पत्र के ऊपर अंकित नही की जाती है। जिस कारण प्रमाण पत्र धारक को प्रमाण पत्र की वैधता अवधि की जानकारी नहीं होती है। औऱ वैधता अवधि की जानकारी ना होने के कारण व्यक्ति प्रमाण पत्र का नवीनीकरण भी नही करवा पाता है। तथा जब जरूरत पड़ने पर कोई अभ्यर्थी OBC के जाति प्रमाण पत्र को किसी सरकारी योजना या नौकरी, भर्ती आदि में लगाता है तो तब उसे पता चलता है कि OBC के जाति प्रमाण पत्र की वैधता 3 वर्ष है। लेकिन ऐन वक्त पर तथा समय कम होने के कारण अभ्यर्थी अपना प्रमाण पत्र रिन्यू (नवीनीकरण) नही करवा पाता है। शासन की इस लापरवाही के कारण अभ्यर्थी का भविष्य अधर में लटक जाता है। औऱ अभ्यर्थी को अनेक परेशानियों औऱ कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। इस सम्बंध में मैंने माननीय आयोग से उक्त शासनादेश का पालन सुनिश्चित करने औऱ ओबीसी के जाति प्रमाण पत्रों के ऊपर उनकी वैधता अवधि अंकित करने का निवेदन किया था। इसके पश्चात मामले की गम्भीरता और शासनादेश की अनदेखी और शासनादेश के हो रहे घोर उल्लंघन को देखते हुए आयोग ने उत्तराखंड सरकार के राजस्व सचिव को नोटिस जारी कर जवाब दाखिल करने के निर्देश दिए। इसके पश्चात राजस्व सचिव उत्तराखंड शासन द्वारा आयोग को कोई भी जवाब और कोई भी रिपोर्ट दाखिल नही की गई। इसके पश्चात आयोग की अध्यक्षा श्रीमती कल्पना सैनी के द्वारा प्रकरण की गम्भीरता को देखते हुए दिनांक 27 जुलाई 2021 को प्रकरण पर सुनवाई करने का निर्णय लिया गया। इसके पश्चात दिनांक 27 जुलाई 2021 को आयोग की अध्यक्षा  कल्पना सैनी की अध्यक्षता में प्रकरण पर सुनवाई शुरू की गई। सुनवाई में राजस्व सचिव उत्तराखंड शासन की ओर से उनके प्रतिनिधि के रूप में  गीता शरद, अनु० सचिव उत्तराखंड शासन उपस्थित हुई। सुनवाई में सर्वप्रथम याचिकाकर्ता (मोहम्मद आशिक) का पक्ष सुना गया। याचिकाकर्ता की औऱ से दलील दी गई कि जब उत्तराखंड सरकार का वर्ष 2016 का शासनादेश है और उस शासनादेश में स्पष्ट रूप से यह प्रावधान किया गया है कि अन्य पिछड़े वर्ग (OBC) के जाति प्रमाण पत्र के ऊपर उसकी वैधता अवधि अनिवार्य रूप से अंकित की जानी चाहिए। लेकिन प्रदेश में वर्ष 2016 से यानी पाँच सालों से इस शासनादेश का पालन नही किया जा रहा है। बल्कि इसकी अनदेखी औऱ उल्लंघन किया जा रहा है। जो कि नियम विरुद्ध है। औऱ इस कारण प्रदेश में जनता को अनेक कठिनाइयों औऱ परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। औऱ जनता को योजनाओं में आवेदन करने में भी अनेक दिक्कतें आ रही है। इसलिए उक्त शासनादेश का पालन सुनिश्चित कर शीघ्र ही अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के जाति प्रमाण पत्रों के ऊपर उनकी वैधता अवधि को अंकित किया जाये। इस पर आयोग ने कड़ी नाराजगी जताते हुए सुनवाई में राजस्व सचिव उत्तराखंड शासन की ओर से उनके प्रतिनिधि के रूप में उपस्थित अनु० सचिव, श्रीमती गीता शरद से पूछा कि वर्ष 2016 में जारी किए गए इस शासनादेश का पालन अभी तक क्यों नही हो पाया है। क्या आपको इस शासनादेश की जानकारी नही है। आखिर क्यों पाँच साल बीतने के बाद भी इस शासनादेश का पालन नही हो पाया हैं। इसके पश्चात सुनवाई में राजस्व विभाग की ओर से उपस्थित अनु० सचिव, श्रीमती गीता शरद द्वारा अपना पक्ष रखते हुए माननीय आयोग को अवगत कराया गया कि अन्य पिछड़ा वर्ग के जाति प्रमाण पत्र की वैधता अवधि 1 वर्ष से बढ़ाकर 3 वर्ष किये जाने के सम्बंध में दिशा निर्देश समाज कल्याण, अनुभाग-2, उत्तराखंड शासन के शासनादेश संख्या- 310 दिनांक 26.02.2016 द्वारा उत्तराखंड के समस्त जिलों के जिलाधिकारियों को प्रेषित किया गया था। उक्त निर्गत शासनादेश के अनुसार शासनादेश के पालन करवाने की जिम्मेदारी सम्बंधित जिले के जिलाधिकारी की है। सुनवाई में सचिव राजस्व विभाग उत्तराखंड शासन की ओर से उपस्थित उनके प्रतिनिधि के रूप में अनु० सचिव उत्तराखंड शासन द्वारा माननीय आयोग को आश्वस्त किया गया कि दो दिन के भीतर प्रकरण का निस्तारण कर दिया जाएगा।  दिनांक 21 अगस्त 2021 को माननीय आयोग की अध्यक्ष  कल्पना सैनी द्वारा प्रकरण में आदेश दिया गया कि अन्य पिछड़े वर्गों के जाति प्रमाण पत्रों में उनकी वैधता अवधि अंकित किये जाने के सम्बंध में उत्तराखंड के समस्त जिलाधिकारियों को पुनः निर्देशित करें साथ ही अपने स्तर से निदेशक राष्ट्रीय सूचना केंद्र (NIC), सचिवालय परिसर, देहरादून को भी शासनादेश संख्या 310 दिनांक 26.02.2016 में निहित प्रावधानों के अनुसार अन्य पिछड़ा वर्ग के जाति प्रमाण पत्र की वैधता अवधि 3 वर्ष अंकित किये जाने हेतु योग्य प्रपत्रों में उत्पन्न त्रुटि को ठीक कराते हुए संशोधित प्रपत्र अपलोड कराते हुए कृत कार्यवाही से माननीय आयोग को अवगत कराएं। माननीय आयोग के दिनांक 21 अगस्त 2021 को अन्य पिछड़ा वर्ग के जाति प्रमाण पत्रों पर उनकी वैधता अवधि अंकित किये जाने के आदेश के 6 महीने के बाद भी राजस्व विभाग द्वारा माननीय आयोग के उक्त आदेश का पालन नही किया गया। औऱ इस सम्बंध में मै कई बार सचिवालय भी गया। जहाँ राजस्व विभाग द्वारा मुझे इस सम्बंध में कोई संतोषजनक जवाब नही मिला। औऱ ना ही कोई कार्यवाही हुई।इसके पश्चात मैंने दिनांक 26 अप्रैल 2022 को माननीय आयोग में अवमानना याचिका दायर की। जिसमे मैंने राजस्व विभाग पर माननीय आयोग के आदेश की अवहेलना किये जाने पर कार्यवाही की मांग की। अब चूँकि माननीय आयोग के आदेश के 6 महीने के बाद भी राजस्व विभाग ने उक्त सम्बंध में कोई भी कार्यवाही नहीं की तो अवमानना याचिका दायर होने बाद कार्यवाही के डर राजस्व विभाग द्वारा अन्य पिछड़े वर्ग (OBC) के जाति प्रमाण पत्रों पर उनकी वैधता अंकित करनी शुरू कर दी है। इसके लिए उत्तराखंड सरकार की वेबसाइट अपनी सरकार पोर्टल को भी NIC द्वारा अपडेट किया गया।और आखिरकार डेढ़ साल की लंबी कानूनी लड़ाई के बाद अन्य पिछड़ा वर्ग के जाति प्रमाण पत्रों पर उनकी वैधता अवधि (3 वर्ष) अंकित होकर आने लगी है। इसका प्रदेश की जनता को लाभ मिलेगा। औऱ जनता समय रहते अपने जाति प्रमाण पत्र का नवीनीकरण करवा सकेगी। औऱ जनता में इसको अन्य पिछड़ा वर्ग के जाति प्रमाण पत्र की वैधता (वैलिडिटी) के सम्बंध में भी जानकारी रहेगी। औऱ जागरूक बढ़ेगीआख़िरकार एक साल चार महीने की कानूनी इस लड़ाई के बाद मुझे इस केस में सफलता हासिल हुई।।इसके लिए मैं माननीय उत्तराखंड अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग का आभार व्यक्त करता हूँ। औऱ धन्यवाद करता हूँ कि माननीय आयोग ने इस सम्बंध में आदेश दिए औऱ जिस शासनादेश का पालन पिछले पाँच सालों से नही हो रहा था। उसका पालन सुनिश्चित करवाया। जिस कारण अब प्रदेश में अन्य पिछड़ा वर्ग के जाति प्रमाण पत्रों के ऊपर उनकी वैधता अवधि (3 वर्ष) छपकर आनी शुरू हो चुकी है।

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