लोकसभा उपचुनाव: सपा-बसपा फिर एक साथ आए
बहुजन समाज पार्टी (बसपा) द्वारा गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा सीट पर समाजवादी पार्टी (सपा) के प्रत्याशियों के समर्थन का ऐलान कर दिया गया है।बसपा इस संबंध में बसपा सुप्रीमो मायावती की ओर से गोरखपुर और इलाहाबाद के जोनल को-ऑर्डिनेटरों को निर्देश पहले ही दे दिए थे। राजनीतिक प्रेक्षकों का मानना है कि देशभर में लगातार बढ़ रहे भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के विजय रथ को रोकने के लिए उत्तर प्रदेश में यह दोनों बड़े दल एक बार फिर साथ आए हैं। प्रेक्षक मानते हैं कि दोनों दलों के एक साथ आने पर पिछड़े, दलित और मुसलमानों का बेहतरीन ‘कॉम्बिनेशन’ बनेगा। इन तीनों की आबादी राज्य में करीब 70 फीसदी है। तीनों एक मंच पर आ जाएंगे तो भाजपा के लिए मुश्किल हो सकती हैं। ज्ञात हो कि 2014 के लोकसभा चुनाव में बसपा को एक भी सीट नहीं मिली थी, जबकि सपा मात्र पांच सीटों पर जीत सकी थी। वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में सपा केवल 47 सीटों पर जीती थी, जबकि बसपा 19 सीटों पर ही सिमट गई थी। उत्तर प्रदेश विधानसभा में कुल 403 और लोकसभा की 80 सीट हैं छह दिसम्बर 1992 को कारसेवकों ने विवादित ढांचा ढहा दिया था। कल्याण सिंह सरकार बर्खास्त कर दी गई थी। वर्ष 1993 में बसपा के तत्कालीन अध्यक्ष कांशीराम और मुलायम सिंह यादव की पार्टी सपा ने मिलकर चुनाव लड़ा। इसका नतीजा रहा कि 1993 में सपा-बसपा गठबंधन ने सरकार बनाई और मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री चुने गए। सरकार करीब डेढ़ साल चली कि इसी बीच दो जून 1995 को लखनऊ में स्टेट गेस्ट हाऊस कांड हो गया। बसपा अध्यक्ष मायावती के साथ सपा कार्यकर्ताओं ने दुर्व्यवहार किया था। इसके बाद गठबंधन टूट गया और भाजपा के सहयोग से मायावती पहली बार मुख्यमंत्री बन गईं, तभी से सपा और बसपा के सम्बंधों में खटास आ गई थी।