मजदूरों का बाजार
वैसे तो देश में कई बाजार देखने को मिलते हैं,जैसे-पलटनबाजार,मीनाबाजार,बरेली का बाजारआदि लेकिन क्याआपने कभी मजदूरों के बाजार के बारे में सोचा है? जी हां,मैं उस बाजार की बात कर रही हूं जहां मेहनत बेची जाती है या मजदूरों को खरीदा जाता है । हमारे देहरादून में भी यह बाजार कई जगह लगता है घण्टाघर,लालपुल पर कई मजदूर सुबह सात बजे से खडे हो जाते हैं फिर एक दिन के खरीदारआकर उन्हें अपने साथ काम करने के लिए ले जातें हैं। ये मजदूर बिहार उ0 प्र0 से बेरोजगारी की मार से बचने के लिए अपने घर परिवार को छोडकर एक सिपाही की तरह शहर रूपी जंग के मैदान में आते हैं, यही है प्रवास। यहां आकर वह अपनी मेहनत बेचते हैं। प्रतिदिन मजदूरी से उनके घर में चूल्हा जल पाता है, और उसी मजदूरी से वह अपने परिवार के लिए पाई-पाई जोडकर भेजते हैं। जिन्हें काम मिलता है, वह तो काम पर लग जाते हैं, लेकिन दुबले-पतले,बूढे मजदूर को हर रोज काम नहीं मिलता तो वह अपनी किस्मत को कोस कर निराश हो जाते हैं। इन मजदूरो को सरकारी योजनाओं का भी पता नहीं रहता इसलिए वह वंचित रहते हैं। काम की तलाश में पहुंचे बिहार के राम सिंह का कहना है कि मनरेगा के तहत उन्हें न काम मिल पा रहा है, और न ही बेरोजगारी भत्ता। जो थोडी मजदूरी भी मिलती है वो बरसात में ठप्प हो जाती है और इनके घर का चूल्हा नहीं जल पाता है। सर्दी-गर्मी की मार झेलते ये मजदूर इतनी मेहनत करके भी पर्याप्त पैसा नहीं पाते हैं। एक दिन के मजदूर दिवस मनाने से कोई फायदा नहीं जबतक इनकी स्थित में सुधार न आए।
– हीना आजमी, बी ए मास कम्युनिकेशन ( साईं इंस्टीट्यूट )