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परमार्थ निकेतन में धूमधाम और उल्लास से मनाई गई शिवरात्रि

ऋषिकेश |  परमार्थ निकेतन में उमंग और उल्लास के साथ शिवरात्रि महोत्सव मनाया गया। परमार्थ गुरूकुल के ऋषिकुमारों ने ड्रम और ढोल की ताल व कीर्तन एवं मंत्रमुग्ध करने वाले संगीत के साथ भगवान शिव की बारात निकाली। परमार्थ निकेतन के परमाध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी महाराज एवं अन्तर्राष्ट्रीय योग महोत्सव की निदेशक साध्वी भगवती सरस्वती जी के पावन सान्निध्य में भगवान शिव का अभिषेक कर पौधा रोपण का संकल्प लिया। परमार्थ गंगा तट पर महाशिवरात्रि का पूजन वैदिक मंत्रों एवं दिव्य शंख ध्वनि के साथ किया। विश्व के अनेक देशों से  आये श्रद्धालुओं ने मिलकर शिवाभिषेक किया। स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी महाराज ने कहा कि शिवरात्रि के अवसर पर शिवपरिवार से विविधता में एकता का संदेश ग्रहण करना चाहिये। भगवान शिव कि गले में सर्प है तो श्री गणेश का वाहन चूहा है और कार्तिकेय का वाहन मोर है, सर्प, चूहे का भक्षण करता है और मोर, सर्प का परन्तु परस्पर विरोधी स्वभाव होते हुये भी सब इस परिवार में आपस में प्रेम से रहते है यही शिक्षा आज के पर्व से ग्रहण करने की जरूरत है कि अलग-अलग विचारों, प्रवृतियों, अभिरूचियों और अनेक विषमताओं के बावजूद मित्रता से मिलजुल कर रहना ही हमारी संस्कृति है।स्वामी जी ने कहा कि उत्तराखण्ड के कण-कण में शिव का वास  है । शिव, आदि योगी हैं, कल्याणकारी हैं। भगवान शिव ने जगत के कल्याण के लिये विष को अपने कंठ में धारण किया। कहा कि हमारे चारों ओर वातावरण में और विचारों में विष और अमृत दोनों व्याप्त हैं, अब यह हमारा दृष्टिकोण है कि हम  विष युक्त जीवन जियंे या अमृत से युक्त जियें। हम अपनी जिन्दगी को अमृत से भर लें या विष से भर दें। अगर हम जिन्दगी को विष से भरते है तो हमारा जीवन दिन प्रतिदिन कड़वा होते जायेगा और अगर हम जीवन को अमृत से भर दें तो जीवन दिन प्रतिदिन बेहतर होते जायेगा। स्वामी जी महाराज ने सभी से आह्वान किया कि ’शिवाभिषेक के साथ-साथ विश्वाभिषेक करंे’ आज सम्पूर्ण धरा को आवश्यकता है धराअभिषेक की, धरा को प्रदूषण मुक्त करने की, एकल उपयोग प्लास्टिक से मुक्त करने की। उन्होने कहा कि अब गलियों का अभिषेक करने की जरूरत है। हर व्यक्ति अपनी-अपनी गलियों को गोद लें तो स्वच्छ भारत, स्वस्थ भारत और समृद्ध भारत होते देर नहीं लगेगी। अन्तर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के अवसर पर स्वामी जी ने कहा कि मातृभूति, माता और मातृभाषा के बिना हमारा जीवन सम्भव नहीं है। अपनी मातृभाषा का उपयोग गर्व के साथ करें और भाषाई संस्कृति और विविधता को बनायें रखंे। स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने सभी शिवभक्तों और श्रद्धालुओं का आह्वान करते हुये कहा कि अपनी जीवनदायिनी नदियों, पर्यावरण एवं धरा को स्वच्छ और एकल उपयोग प्लास्टिक से मुक्त करने का संकल्प करें तथा यात्रा की याद में कम से कम एक-एक पौधों का रोपण अवश्य करें।

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