समस्या विश्व शान्ति की
आजकल विश्व एक गम्भीर संकट से गुजर रहा है। युद्ध का खतरा डिमोक्लीज की तलवार की तरह मानव जाति के सिर पर लटक रहा है। मानव जाति ने बडे कष्ट और दुख, कठिन परीक्षाओं एवं तकलीफों का सामना किया है। वह शान्ति के पीछे भागती है। जो कि इसके में नहीं है। शान्ति बहुत महान चीज है जिसको मानवता चाहती है, क्योंकि बिना इसके मुक्ति नहीं। पृथ्वी माता की छाती पर युग-युगों से जो असंख्य युद्ध लडे गये हैं, उन्होंने मानव जाति को विभिन्न समस्याओं के समाधान के लिए प्रेरित किया है, जिससे कि उसका यहां सुखमय वास हो सके। यह खोज इतनी तीव्र कभी नहीं थी जितनी की अब शान्ति की समस्या कभी इतनी वास्तविक नहीं थी जितनी कि यह अब है, क्योंकि युद्ध के विनाशकारी शस्त्र विशेषकर नाभिकीय शस्त्रों के आविष्कार एवं भण्डारण इस पृथ्वी पर मानव जाति के अस्तित्व के लिए एक वास्तविक खतरा बने हुए हैं। जैसा कि हम पहले कह चुके हैं, विश्व शान्ति की समस्या हमारे युग के लिए नयी नहीं हैं। यह तो यहां हमेशा रही और राजनीतिज्ञ एवं विद्वान निरन्तर दसके समाधान के लिए प्रयास करते रहे हैं। प्राचीन काल में हमारे गुरू, महात्माओं ने हमको अपने अन्दर वसुदैव कुटुम्बकम् के आदर्श को हृदय में उतारने की शिक्षा दी, क्योंकि इस दृष्टिकोण को अपनाकर ही हम उस स्वार्थ और लालच का त्याग कर सकते हैं जिनकी वजह से मुख्यत; युद्ध होते। बहुत से पाश्चात्य दार्शनिक ने विश्व राज्य या विश्व सरकार की स्थापना की आवश्यकता पर जोर दिया है। दनकी दृष्टि में विश्व राज्य या विश्व सरकार मानव जाति की विभिन्न इकाइयों को, जिनको राष्ट्र कहा जाता है, एक दूसरे का आदर करने हेतु अनुशासित करेगी। यह सबको न्याय प्रदान करने हेतु कार्य करेगी। यूरोपीय इतिहास में राजनीतिज्ञों के द्वारा कई बार कुछ इस प्रकार की संस्था की स्थापना की कोशिशें की गई जो कि काॅमन मंच बन सके जहां पर विभिन्न देश एक दुसरे के खिलाफ शिकायतें ले जा सकें और बातचीत, मध्यस्थता और पंच फैसले के द्वारा समाधान पा सकें। 1899 एवं 1907 में आयोजित हेग सम्मलेन स्थायी आधार पर शान्ति स्थापित करने की दिशा में प्रयास थे।